Saturday, April 28, 2012

सोचना क्या.....

 
कहते हैं, "मन का हो तो अच्छा और मन का हो तो और भी अच्छा "....पता नहीं इन बातों में सच्चाई कितनी हैआपने कभी ढूँढने की कोशिश की इसकी सच्चाई या गहराई को | कभी कभी तो लगता है, ये मन बहलाने के लिए होती हैं...या फिर ज्यादा ठेस ना पहुंचे इसलिए बस कह दी जाती हैं यूँ ही ।और अजीब बात तो ये है की मन को इससे सुकून भी मिलता है ।
 
ऐसा ही कुछ और याद आ रहा है मुझे...जैसे "समय से पहले या भाग्य से ज्यादा कभी कुछ नहीं मिलता", " लगताहै अभी संजोग नहीं है..." इत्यादिपर मुझे क्यूँ ऐसा लगता है इनकी सच्चाई का हम अनुमान नहीं लगा सकते क्यूँ  कि, जब चीज़ें हमारे अनुसार घटती हैं तो हम इन कथनों पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेते हैं, अपने किये हुए कर्म का सारा श्रेय अपने भाग्य या समय को दे देते हैंऔर जब बातें अपेक्षा अनुसार नहीं होती तो धीरे से भाग्य का रोना रो देते हैंक्या भाग्य या समय से हम इतना बंधे हैं की उसके जंजाल से हम निकल नहीं पाते या फिर जान बूझकर निकलना नहीं चाहते...
 
खैर, अपना तो विश्वास है कि कभी इस बुद्धू बक्से से बहार निकल कर भी सोच लेना चाहिए। खिंची हुई लकीर पर चलने से बेहतर है कि अपना खुद का रास्ता बना लें...थोड़ी तकलीफ होगी...पैर में कांटे चुभेंगे, लोग बातें कहेंगे, मन एक बार को कहेगा कि,"चल वापस हो ले...पागल है क्या" ?? पर अगले ही पल उसे भी सुकून लगने लगेगा और दिल के किसी कोने से आवाज़ आएगी..."सोचना क्या...जो भी होगा देखा जायेगा"।मन खुद को उसी पल सारे चिंताओं, आशंकाओं, दुविधाओं से मुक्त पायेगा। खुद को हल्का महसूस करने लगेगा , बिल्कुल वैसे ही जैसे.... हाथ से छूटा, कोई हवा का गुब्बारा आकाश में निर्द्वंद भाव से उड़ता चला जाता है । उसे ना कोई रोकने वाला है, ना टोकने वाला ।

एक छोटी सी कविता लिखना चाहूँगी, इस वक़्त अपने मन के भीतर चल रहे द्वंदों को लेकर, जो ऐसी ही किन्ही परिस्थितियों में उलझ गयी है...और शायद मन उसको सुलझाने में कामयाब हो जाये...:)

"लगता है संजोग नहीं, अभी उस घटना-क्रम के होने का
मन करता है कुछ पाने का, जी करता है खुश होने का
ऐसा ज़रूरी तो नहीं कि, हर लम्हा बीते अपने मन का
उठ जा मुसाफिर आगे बढ़,फायदा नहीं बाट जोहने का
कोशिश अपनी पुरज़ोर रही, इतनी तस्सली है दिल को
जो होगा, सब अच्छा होगा,समय नहीं नयन भिगोने का।।
जब आये हैं अकेले दुनिया में, क्यूँ कारवां की आरज़ू रहती है....
कोई रास्ता देगा तुमको 'रेनू', क्यूँ ऐसी जुस्तजू रहती है....
एक कदम बढ़ा, ज़रा कोशिश कर.....
                                      फिर देख मज़ा आगे बढ़ने का।। 
ज़िन्दगी की रफ़्तार बदल जाएगी...
                                       आएगा मज़ा फिर जीने का ।। "

 



wriiten & posted by:-
Renu Mishra

Wednesday, April 25, 2012

Khwahishon Ko Jinda Rakho...Renu Mishra

 ख्वाहिशें ज़िन्दगी का उल्लास हैं.....हमें उन्हें जिंदा रखना है....:) 

हमने अक्सर देखा है कि जब भी किसी इंसान से मिलो, उससे बातें करो तो पता चलता है कि उसने अपनी ज़िन्दगी कि ज़रूरतों को, परिवार कि ज़रूरतों को, और समाज कि ज़रूरतों को पूरा करने में खुद को कहीं खो चूका रहता है । कोई अन्य क्यूँ...हम स्वयं भी उसी नौका में सवार हैं। न जाने कितनी बार हम अपनी ज़रूरतों को पूरा करने में ख्वाहिशों को अनदेखा कर देते हैं।कहने को ये तो केवल शब्द मात्र हैं पर सोचो तो इनमे ज़मीन-आसमान का फर्क है।

चाहतें, ज़रूरतों को पूरा नहीं करती और ज़रूरतों को पूरा करने में, जाने कितनी ही चाहतें अधूरी रह जाती हैं।ज़िन्दगी इन्ही के बीच पिसती हुई मिल जाती है। चाहतों, ख्वाहिशों की मंजिल बहुत दूर होती है। इसलिए नहीं कि, उसका रास्ता लम्बा होता है बल्कि उसमे ज़रूरतों के मोड़ बहुत होते हैं. पर इसका मतलब नहीं कि हम ख्वाहिश रखना छोड़ दें...सपने नहीं देखेंगे तो वो पूरे कैसे होंगे??
इसलिए सपने ज़रूर देखने चाहिए, चाहतों को दिल में ज़रूर पालना चाहिए, उम्मीदों कि लौ को हमेशा जलाये रखना चाहिए...क्यूंकि कभी न कभी ज़िन्दगी की ज़रूरतें पूरी होंगी और मन ख्वाहिशों को पाने को लपक पड़ेगा।

और ये तो मैंने देखा है, अगर दिल से कोई चीज़ चाहो तो मिलती ज़रूर है...एक किस्सा याद आ रहा है..एक लड़की अपनी माँ से कढाई करना सीख रही थी, उसकी माँ ने पूछा क्या काढना चाहती हो तो उसने छोटा सा  जवाब दिया...एक प्यारा-सा बगीचों वाला घर, जिसके आँगन में हमेशा फूल (खुशियाँ) खिले हों और छत सितारों से सजा हो. उसने अपने  सपने को काढ लिया और रोज़ उसे  देखकर ख्वाहिश करने लगी. पर घर में दुर्घटना हो गयी जिससे उसका सब कुछ खो गया पर वो दिल नहीं खोया जिसमे उसने वो सपना संजोया था...समय बीता,सदियाँ बीती, पर उम्मीदें, अभी भी पलकों पर बैठ कर उस पल को जीने का इंतज़ार कर रही थी। और एक दिन वो सपना साकार हुआ..उसको उसका प्यार मिला, घर-बार मिला और आज वो अपने घर के लॉन में पौधों को पानी डालते मिल जाती है।

ज़रूरतों को पूरा करने में ख्वाहिशों कि बलि चढ़ती है पर मन को बिना उदास किये उसको पूरा करने कि चाहत को बरकरार रखना चाहिए...आखिर ज़िन्दगी तो हमें एक ही मिली है। उसी में सब कुछ करना है। 
"बस मन धीर धरे तो सब संभव है....
मन का उल्लास न मरे तो सब संभव है....
दिल में बचपन अठखेलियाँ करता रहे तो सब संभव है....
आँखों में सपनों का उजास न बुझे तो सब संभव है ।।"

wriiten & posted by:-
Renu Mishra