कहते हैं, "मन का हो तो अच्छा और मन का न हो तो और भी अच्छा "....पता नहीं इन बातों में सच्चाई कितनी है। आपने कभी ढूँढने की कोशिश की इसकी सच्चाई या गहराई को | कभी कभी तो लगता है, ये मन बहलाने के लिए होती हैं...या फिर ज्यादा ठेस ना पहुंचे इसलिए बस कह दी जाती हैं यूँ ही ।और अजीब बात तो ये है की मन को इससे सुकून भी मिलता है ।
ऐसा ही कुछ और याद आ रहा है मुझे...जैसे "समय से पहले या भाग्य से ज्यादा कभी कुछ नहीं मिलता", " लगताहै अभी संजोग नहीं है..." इत्यादि। पर मुझे क्यूँ ऐसा लगता है इनकी सच्चाई का हम अनुमान नहीं लगा सकते क्यूँ कि, जब चीज़ें हमारे अनुसार घटती हैं तो हम इन कथनों पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेते हैं, अपने किये हुए कर्म का सारा श्रेय अपने भाग्य या समय को दे देते हैं। और जब बातें अपेक्षा अनुसार नहीं होती तो धीरे से भाग्य का रोना रो देते हैं । क्या भाग्य या समय से हम इतना बंधे हैं की उसके जंजाल से हम निकल नहीं पाते या फिर जान बूझकर निकलना नहीं चाहते...
खैर, अपना तो विश्वास है कि कभी इस बुद्धू बक्से से बहार निकल कर भी सोच लेना चाहिए। खिंची हुई लकीर पर चलने से बेहतर है कि अपना खुद का रास्ता बना लें...थोड़ी तकलीफ होगी...पैर में कांटे चुभेंगे, लोग बातें कहेंगे, मन एक बार को कहेगा कि,"चल वापस हो ले...पागल है क्या" ?? पर अगले ही पल उसे भी सुकून लगने लगेगा और दिल के किसी कोने से आवाज़ आएगी..."सोचना क्या...जो भी होगा देखा जायेगा"।मन खुद को उसी पल सारे चिंताओं, आशंकाओं, दुविधाओं से मुक्त पायेगा। खुद को हल्का महसूस करने लगेगा , बिल्कुल वैसे ही जैसे.... हाथ से छूटा, कोई हवा का गुब्बारा आकाश में निर्द्वंद भाव से उड़ता चला जाता है । उसे ना कोई रोकने वाला है, ना टोकने वाला ।
एक छोटी सी कविता लिखना चाहूँगी, इस वक़्त अपने मन के भीतर चल रहे द्वंदों को लेकर, जो ऐसी ही किन्ही परिस्थितियों में उलझ गयी है...और शायद मन उसको सुलझाने में कामयाब हो जाये...:)
"लगता है संजोग नहीं, अभी उस घटना-क्रम के होने का
मन करता है कुछ पाने का, जी करता है खुश होने का ॥
ऐसा ज़रूरी तो नहीं कि, हर लम्हा बीते अपने मन का
उठ जा मुसाफिर आगे बढ़,फायदा नहीं बाट जोहने का॥
कोशिश अपनी पुरज़ोर रही, इतनी तस्सली है दिल को
जो होगा, सब अच्छा होगा,समय नहीं नयन भिगोने का।।
जब आये हैं अकेले दुनिया में, क्यूँ कारवां की आरज़ू रहती है....
कोई रास्ता देगा तुमको 'रेनू', क्यूँ ऐसी जुस्तजू रहती है....
एक कदम बढ़ा, ज़रा कोशिश कर.....
फिर देख मज़ा आगे बढ़ने का।।
फिर देख मज़ा आगे बढ़ने का।।
ज़िन्दगी की रफ़्तार बदल जाएगी...
आएगा मज़ा फिर जीने का ।। "
wriiten & posted by:-
Renu Mishra