Tuesday, July 1, 2014

**************ज़िंदगी के टिमटिमाते दिये**************


कुछ लोग आपकी ज़िंदगी मे टिमटिमाते दिये की तरह होते हैं...सूरज जैसा आँखों को चौंधिया देने वाला उजाला नहीं करते, लेकिन अपने स्नेह के मद्धम रोशनी से आपकी ज़िंदगी की अंधेरी गलियों को रौशन करते जाते हैं...आपको एहसास भी नहीं होता, और आप अपने बेनूरी से बाहर आ चुके होते हैं।
यहाँ नाम नहीं लूँगी...उन उजालों का...नहीं तो रश्क हो जाएगा उन्हे खुद पर। पर मुझे गुमान है अपने उन टिमटिमाते दीयों पर :)

Friday, February 21, 2014

...और मछलियाँ तैरने लगीं :)

महिलाओं की बहुचर्चित पत्रिका "बिंदिया" के जुलाई अंक मे "बाल-मन" पर मेरा ये लेख, आप सभी ज़रूर पढ़िएगा :)

आज शाम, वॉक से लौटी तो ये देखने के लिए कि बच्चे क्या कर रहे हैं...उनके कमरे मे गयी । बिटिया मैथ्स के उलझनों के साथ साथ किसी और उलझन मे दिखी और बेटा...कमरे मे ही क्रिकेट कि प्रैक्टिस मे व्यस्त!!

मुझे देखते ही बोला...मम्मा, आप जो काम दे कर गयी थी मैंने कर लिया, सब याद हो गया मुझे...चाहो तो सुन लो पर बिटिया का चेहरा कुछ छुपाने और बताने के उलझन मे जस का तस फंसा था।

अभी कुछ और समझने की कोशिश करती, मेरी निगाह कमरे के सामने वाली दीवार पर गयी। देखती क्या हूँ कि.....कलर पेंसिल से एक थोड़ी मोटी और एक थोड़ी छोटी मछली बुलबुले छोड़ते हुए, दीवार पर तैरने के जद्दोजहद मे  लगी हुई हैं :P :D। देखकर हंसी भी आ रही थी......पर अपनी हंसी पर नाराजगी का मुखौटा लगाते हुए वापस मुड़ी तो बेटी थोड़ा और उलझ चुकी थी। वो सोच मे थी कि किस की कितनी डांट पड़ेगी...और मैंने भी अपना मम्मी-पना झाड़ते हुए डांटने का कार्यक्रम शुरू कर दिया

पहला ही सवाल दागा...किसकी कारिस्तानी है ये ?? दोनों निरुत्तर खड़े रहे।  जबकि मैं जानती थी ये छोटे की ही कारिस्तानी है...फिर भी दोनों भाई बहन के बीच का प्यार देख रही थी...कोई किसी का नाम नहीं ले रहा था :)
इस पर भी अपने डांट का बौछार कम ना करते हुए....अभी अभी इसी साल पुताई कराई थी...सोचा था चलो अब एक-दो साल की छुट्टी पर तुम लोग कहाँ मानने वाले हो ?? कितना समझाया था कि बच्चों घर साफ रखना है, दीवारें गंदी नहीं करनी है...कोई पेंसिल नहीं चलाएगा....ब्ला ब्ला ब्ला

मेरा इतना कहना था कि, बेटा चट से बोल उठा...मम्मा, पर ये तो कलर पेंसिल है। मैंने भी झट से उसे अपने पास खींचते हुए, बोली...पकड़ा गया चोर !! तूने ही बनाया है न इन मछलियों को (अपनी हंसी छिपाते हुए ), बेटी ने सर पे हाथ रख लिया कि, लो हो गया गड़बड़-घोटाला ।

बेटा बड़ी मासूमियत से बोला, मम्मा...क्या इतने बड़े नीले समंदर मे मेरी दो नन्ही नन्ही मछलियाँ भी नहीं रह सकती?? मैंने भी ध्यान से देखा तो वो उस सामने वाली दीवार कि ओर इशारा कर रहा था, जो नीले रंग मे पुती हुई थी। वो मेरे लिए केवल साफ सुथरी दीवार थी जिस पर कारिस्तानी कर दी गयी थी पर उस कोरे मन के लिए बड़ा सा नीला समंदर !!

अब मैं निरुत्तर किनारे पर खड़ी थी और सामने सवाल लिए भोले मन का अथाह समंदर हिलोरें ले रहा था। दोनों को सीने से लगाया और जवाब दिया....क्यों नहीं रह सकती...बिलकुल रह सकती हैं :)

तभी अपने कंधों पर मजबूत हाथों को महसूस किया...पलट के देखा तो ये मौन खड़े होकर हमारी बातें सुन के मुस्कुरा रहे थे और मैं इशारों से समझा रही थी कि मेरे बच्चों को कोई और कुछ कहे, ये मुझे गवारा नहीं। उन्हे केवल मैं ही डांट सकती हूँ...यहाँ तक कि आप भी नहीं !!

(प्रिय पाठकों...आप सब से भी अनुरोध है कि बाल मन को खिलने दीजिये। वो अपने हिसाब से अपना ज़मीं-आसमा तय कर लेंगे...बस हर पल उन पर अपने प्यार की धूप और ज़रूरत के अनुसार डांट के खाद-पानी को देते रहिए...बड़े हो कर सब के जीवन मे हरियाली ले आएंगे )






Saturday, January 11, 2014

“नयी बीमारी...पुछेरिया”


भई अभी तक हमने तो जौंडिस, टाइफाइड, मलेरिया के बारे मे ही सुना था, झेला था पर अब लगता लगता है आज कल, लोग एक नयी बीमारी से संक्रमित हो गए हैं....”पुछेरिया- पूछ के करना”। जिसको देखो यार वो हर काम पूछ के करने लगा है। बड़ी तेज़ी से फैल रही है ये बीमारी...शायद बर्ड फ्लू से भी ख़तरनाक है। बर्ड फ्लू के लिए तो विदेश से लौटे हुए यात्रियों का संपर्क ज़रूरी है...किन्तु ये रोग तो मेट्रो शहरों से लेकर छोटे शहरों के हर नुक्कड़, हर चौराहे पर अनशन करता हुआ मिल जाएगा। इस बीमारी से ग्रसित इंसान अपना हर काम करने के लिए लोगों से राय लेने लगा है, एसएमएस करवाने लगा है, सोशल नेटवर्किंग साइट पर मित्रों से, अपने पंखों (fans)से पूछने लगा है, राह मे चलते लोगों को पकड़ के पूछने लगा है कि, भाईसाहब, सड़क क्रॉस करूँ कि नहीं....हद है बाइ गॉड!! छींकना है तो पूछना है, खाँसना है तो पूछना है...अब तो लगता है....खुदा वो दिन ना दिखा दे कि, लोग, ये भी ना पूछते हुए मिल जाएँ, कि ज़िंदा रहना है या नहीं”।  

भई अब तक तो हमने ये ही सुना था कि, “सुनो सबकी, करो मन की”....लेकिन शायद अब सिनारिओ बादल चुका है...अब हर काम पूछ के करना है। ठीक भी है....काम गलत हुआ तो ठीकरा फोड़ने के लिए कोई सर तो चाहिए ना ;) और गर खुदा-ना-खासते सही हो गया तो वाह-वाही लूटने का मौका मिल जाएगा और लोगों के बीच फ़ेमस हो जाएंगे सो अलग :D

इसलिए भाइयों और बहनों, डरने वाली कोई बात नहीं....इस बीमारी से आपके पांचों उंगली घी मे और सर कढ़ाई मे। और फिर ऐसा मौका कोई हाथ से (मेरा मतलब आप समझ रहे होंगे) जाने थोड़े ही देता है। ये एक सेलेब्रिटी स्टाइल quotient भी बन गया है....इस बीमारी से लोग आम से खास हो जा रहे हैं। 

पर हम तो कहते हैं भईया...खास बनाने पर अनार हो जाएगा...इतनी बीमारियाँ हैं, एक अनार से कितनों का इलाज हो पाएगा। इसलिए...आम को आम रहने दो, थोड़ा और पकने दो...एक पेड़ से कई और पेड़ बनेंगे...बउर फरेगा....हजारों लाखों की संख्या मे नए आम आएंगे...पके हुए, मंजे हुए...फिर कर देंगे वो हर बीमारी का इलाज। फिर उनके लिए हर चुनौती तीन पत्ती का खेल हो जाएगा, कोई इम्तिहान नहीं, जिसके रिज़ल्ट का हर किसी को इंतज़ार रहे। अभी की तरह नहीं...जहां, हर कोई औना-पौना, अदना-सा, बिना अलिफ बे पे ते पढे....नए बुहार को, अपना पास-फ़ेल का सर्टिफिकेट देने के लिए तैयार है। 

मार्क कीजिये अगर मैं कहीं गलत हूँ....बताइये सही हूँ कि नहीं?? अरे राम रे!! सब को इस बीमारी के बारे मे बताते लग रहा है मुझे भी इन्फ़ैकशन हो गया...भाई, बड़ा contagious है ये रोग...पुछेरिया ;)