काव्य-समीक्षा
कविता संग्रह - || अंतिम विदाई से तुरंत पहले ||
रचनाकार - || प्रांजल धर ||
इन दिनों हिंदी काव्यधारा में पूछा जाए तो हर तीसरे व्यक्ति को छोड़ चौथा व्यक्ति अपने को कवि कहता है। किन्तु कवि कहने और कवि होने में ज़मीन आसमान का अंतर है। यह व्यष्टि से समष्टि हो जाने की क्रिया है। जो भावनायें सार्वभौमिक हैं (जैसे प्रेम, सुख, दुःख, हर्ष, विषाद इत्यादि) उन प्रत्ययों को हूबहू उसी संवेदना के साथ पिरो देना, वैश्विक सुख-दुःख से आत्म-सुख-दुःख को जोड़ देना ही कविता है। कहा भी गया है कि अपने लिए जिए तो क्या जिए, अपने लिए मरे तो क्या मरे। तो बीते दिनों, इन्ही भावनाओं से लबरेज़ एक काव्य-संग्रह नज़र के सामने से गुज़रा जिसका नाम है "अंतिम विदाई से तुरंत पहले"। इसे पिछले वर्ष यानि 2014 में साहित्य अकादमी द्वारा "नवोदय योजना" के तहत प्रकाशित किया गया है। मूलतः गोण्डा (उ.प्र) से ताल्लुक रखने वाले कवि प्रांजल धर का यह पहला काव्य-संग्रह है। पचहत्तर कविताओं वाले इस काव्य-संग्रह में जीवन का हर स्वाद मौजूद है। इन कविताओं में भारतीय ग्राम्य-जीवन की विषमता के संग संग समाज में व्याप्त आर्थिक दुर्व्यवस्थाओं का भी चित्रण है। जैसे इन पंक्तियों में अमीरी-गरीबी, दोनों दृष्टि के ज़रिये गरीबी का आकलन होता है-
"यह उनकी मुफलिसी का ताज़ा व्याकरण है
कि उनके
एयर-कंडीशनर का स्विच ख़राब हो गया है
और मजबूरी में वे जेठ की तपती दोपहरी
में महज़ कूलर के भरोसे सोते हैं।"
कवि, पेशे से पत्रकार है इसलिए देश-दुनिया में हो रहे सामाजिक और राजनितिक बदलावों पर भी पैनी नज़र रखता है और अपनी कविता के ज़रिये तीखी टिप्पणी भी करता है--
"और आत्महत्या कितना बड़ा पाप है, यह सबको नहीं पता,
कुछ बुनकर और विदर्भवासी इसका कुछ-कुछ अर्थ
टूटे-फूटे शब्दों में ज़रूर बता सकते हैं शायद"
"यह उनकी मुफलिसी का ताज़ा व्याकरण है
कि उनके
एयर-कंडीशनर का स्विच ख़राब हो गया है
और मजबूरी में वे जेठ की तपती दोपहरी
में महज़ कूलर के भरोसे सोते हैं।"
कवि, पेशे से पत्रकार है इसलिए देश-दुनिया में हो रहे सामाजिक और राजनितिक बदलावों पर भी पैनी नज़र रखता है और अपनी कविता के ज़रिये तीखी टिप्पणी भी करता है--
"और आत्महत्या कितना बड़ा पाप है, यह सबको नहीं पता,
कुछ बुनकर और विदर्भवासी इसका कुछ-कुछ अर्थ
टूटे-फूटे शब्दों में ज़रूर बता सकते हैं शायद"
"और दस शातिर उँगलियाँ
प्रतीक दसों दिशाओं में फैले
'भइया' के आतंकी साम्राज्य की
......
मानों पल-भर में हज़ार बार
पैदा हुआ हो हिटलर
और सौ बार हत्या हुई हो गांधी की।"
लेकिन साथ ही अधिक यात्रायें करने से जो ज्ञान में अभिवृद्धि हुई है, उन जानकारियों को कविताओं में समावेशित करने से, कविता अपने भाव-लिपि से दूर होती हुई नज़र आई है। कहीं-कहीं कविताओं में विदेशी जानकारी और उससे जुड़े नामावलियों की इतनी भरमार है कि कविता पढ़ने में ऊबन महसूस होने लगती है। "कुल इतनी कहानी", "खो गया सौंदर्य", "बियाना की याद", "ख़ैरआफ़ियत" कुछ ऐसी ही कवितायेँ हैं। कवि को जानकारियों को आरोपित करने की ऐसी सघनता से बचना चाहिए।
प्रतीक दसों दिशाओं में फैले
'भइया' के आतंकी साम्राज्य की
......
मानों पल-भर में हज़ार बार
पैदा हुआ हो हिटलर
और सौ बार हत्या हुई हो गांधी की।"
लेकिन साथ ही अधिक यात्रायें करने से जो ज्ञान में अभिवृद्धि हुई है, उन जानकारियों को कविताओं में समावेशित करने से, कविता अपने भाव-लिपि से दूर होती हुई नज़र आई है। कहीं-कहीं कविताओं में विदेशी जानकारी और उससे जुड़े नामावलियों की इतनी भरमार है कि कविता पढ़ने में ऊबन महसूस होने लगती है। "कुल इतनी कहानी", "खो गया सौंदर्य", "बियाना की याद", "ख़ैरआफ़ियत" कुछ ऐसी ही कवितायेँ हैं। कवि को जानकारियों को आरोपित करने की ऐसी सघनता से बचना चाहिए।
प्रांजल धर की प्रेम विषयक और भावना-प्रधान कवितायेँ, मन को अधिक बांधती हैं। वहाँ उनकी कविताओं में जो कथ्य है वो सीधे-सीधे मन को आत्मा से ऐसे जोड़ देता है जैसे कोई साधक अपनी साधना के जरिये सीधे-सीधे अपने इष्टदेव से जुड़ जाए। बीच में किसी बिचौलिए की आवश्यकता ही ना हो। इन कविताओं में प्रेमी-प्रेमिका, बहन, भाई जैसे संबंधों के जो रूप सामने आये हैं, उनके भाव इतने कोमल हैं कि इन कविताओं को बार-बार पढ़ने और दोहराने का मन हो उठता है। साथ ही हिन्दू परिवार में नारी जीवन की विषमताओं का भी बड़े मार्मिक ढंग से चित्रण किया गया है। "अनारकली का लिप्यंतरण", "बहन", "हमारी बातें", "लव और प्रेम", "ना मिट पाने वाला निशान" और "प्रेम का वर्गीकरण" कुछ ऐसी ही कवितायेँ हैं । "प्रेम का वर्गीकरण" की कुछ पंक्तियाँ पढ़ने पर इसकी रोचकता समझ आ जाती है। जैसे-
पहले कहती थी तुम
मैं प्रेम करती हूँ तुमसे
वक़्त और हालात ने पढ़ाये कुछ पाठ
दी कुछ सीख जीवन की
और कहा तुमने,
मैं सच्चा प्रेम करती हूँ तुमसे
झूठे प्रेम की जानकारी हो चली थी तुम्हें।
पहले कहती थी तुम
मैं प्रेम करती हूँ तुमसे
वक़्त और हालात ने पढ़ाये कुछ पाठ
दी कुछ सीख जीवन की
और कहा तुमने,
मैं सच्चा प्रेम करती हूँ तुमसे
झूठे प्रेम की जानकारी हो चली थी तुम्हें।
आज कल हिंदी काव्यधारा में लंबी कवितायेँ लिखने का साहस कुछ ही कवि दिखा पाते हैं और प्रांजल धर उन साहसिक युवा कवियों में से हैं जो इस तरह के प्रयोग से हिचकते नहीं। इस संग्रह में "बेरोजगारी में", "मौत का रास्ता बिलकुल साफ़ है", "मुझे ले चलो अपने ही देस, नदियों" के शीर्षक वाली कवितायेँ कई खण्डों में विभाजित होते हुए भी एक-दूसरे में गुंथी हुई हैं। ये कवितायेँ लंबी होते हुए भी पाठक को बाँधे रखती हैं। वह सहजता से उन कविताओं के उतार-चढाव में खुद को बहता हुआ महसूस कर पाता है। फिर वो चाहे "बेरोजगारी में" कविता के एक खंड में जब पढता है कि, " यह सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पनपी/ गैर सरकारी दोस्तियों का दौर था/ जिसका बाल-बांका कर न सकी कोई बेरोजगारी/" या फिर "यक़ीन नहीं होता/ कि कैसे चौड़े और चौकस हो कर/ बैठते थे हम बेरोजगारी के दिनों में!/ बेरोजगारी शायद ईंधन हुआ करती थी/ हमारे सपनों का।"
इसके अलावा कुछ और कवितायेँ जो पाठकों को बेहद पसंद आ सकती हैं जैसे, "बहुत ज़रूरी", "कुछ भी कहना खतरे से खाली नहीं", "वह भी एक दौर था" और "न कोई उम्मीद, न कोई..." प्रमुख हैं। एक आम आदमी के जीवन के उम्मीद, आशा, निराशा, डर और उदासी की बानगी को व्यक्त करती ये कवितायेँ बहुत अपनी-सी लगती हैं। इस तरह, इस संग्रह की लगभग सभी कवितायेँ न केवल अपने समय से मुठभेड़ करती हुई नज़र आती हैं बल्कि हाशिये तक पहुँच चुकी संवेदनाओं को भी बचाये रखने में सफल रह पाती है।
इसके अलावा कुछ और कवितायेँ जो पाठकों को बेहद पसंद आ सकती हैं जैसे, "बहुत ज़रूरी", "कुछ भी कहना खतरे से खाली नहीं", "वह भी एक दौर था" और "न कोई उम्मीद, न कोई..." प्रमुख हैं। एक आम आदमी के जीवन के उम्मीद, आशा, निराशा, डर और उदासी की बानगी को व्यक्त करती ये कवितायेँ बहुत अपनी-सी लगती हैं। इस तरह, इस संग्रह की लगभग सभी कवितायेँ न केवल अपने समय से मुठभेड़ करती हुई नज़र आती हैं बल्कि हाशिये तक पहुँच चुकी संवेदनाओं को भी बचाये रखने में सफल रह पाती है।
द्वारा समीक्षा--
रेणु मिश्रा
अनपरा, सोनभद्र
ईमेल- remi.mishra@gmail.com
अनपरा, सोनभद्र
ईमेल- remi.mishra@gmail.com
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कवि परिचय---
नाम -- प्रांजल धर
जन्म - हिंदी साहित्य के युवा कवियों में चर्चित रचनाकार के रूप में जाने जा रहे कवि प्रांजल धर का जन्म उत्तर-प्रदेश के छोटे से शहर गोंडा में हुआ है।
शिक्षा - भारतीय जनसंचार संस्थान, जे.एन.यू. कैम्पस से जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक
कार्य – देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र–पत्रिकाओं में कविताएँ, समीक्षाएँ, यात्रा वृत्तान्त और आलेख प्रकाशित। आकाशवाणी जयपुर से कुछ कविताएँ प्रसारित। देश भर के अनेक मंचों से कविता पाठ। सक्रिय मीडिया विश्लेषक। 'नया ज्ञानोदय', 'जनसंदेश टाइम्स' और ‘द सी एक्सप्रेस’ समेत अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित स्तम्भकार। जल, जंगल, जमीन और आदिवासियों से जुड़े कार्यों में सक्रिय सहभागिता। 1857 की 150वीं बरसी पर वर्ष 2007 में ‘आदिवासी और जनक्रान्ति’ नामक विशेष शोधपरक लेख प्रकाशन विभाग द्वारा अपनी बेहद महत्वपूर्ण पुस्तक में चयनित व प्रकाशित। अवधी व अंग्रेजी भाषा में भी लेखन।
पुरस्कार व सम्मान - कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार। पत्रकारिता और जनसंचार के लिए वर्ष 2010 का प्रतिष्ठित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार। वर्ष 2013 में पंचकूला में हरियाणा साहित्य अकादेमी की मासिक गोष्ठी में मुख्य कवि के रूप में सम्मानित एवं कई अन्य पुरस्कार।
पुस्तकें – ‘समकालीन वैश्विक पत्रकारिता में अख़बार’ (वाणी प्रकाशन से)। राष्ट्रकवि दिनकर की जन्मशती के अवसर पर 'महत्व : रामधारी सिंह दिनकर : समर शेष है'(आलोचना एवं संस्मरण) पुस्तक का संपादन एवं अन्य चर्चित पत्रिकाओं का संपादन।
सम्पर्क :
प्रांजल धर
2710, भूतल, डॉ. मुखर्जी नगर, दिल्ली – 110009
मोबाइल- 09990665881
ईमेल- pranjaldhar@gmail.com
प्रांजल धर
2710, भूतल, डॉ. मुखर्जी नगर, दिल्ली – 110009
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ईमेल- pranjaldhar@gmail.com